सुनील दत

#06jun 
#25may 
सुनील दत
🎂06 जून 1929,
 खर्द, पाकिस्तान
⚰️25 मई 2005, 
बांदरा पश्चिम, मुम्बई
सुनील दत्त का नाम बलराज दत्त था
बच्चे: संजय दत्त, प्रिया दत्त, नम्रता दत्त
पत्नी: नरगिस (विवा. 1958–1981)
माता-पिता: दिवान रघुनाथ दत्त, Kulwantidevi Dutt
सुनील का जन्म ब्रिटिश भारत में पंजाब राज्य के झेलम जिला स्थित खुर्दी नामक गाँव में हुआ था। यह गाँव अब पाकिस्तान मे है। बँटवारे के दौरान उनका परिवार भारत आ गया। सुनील ने मुम्बई के जय हिन्द कालेज में दाखिला लिया और जीवन यापन के लिये बेस्ट में कण्डक्टर की नौकरी भी की।
उनके कैरियर की शुरुआत रेडियो सीलोन पर, जो कि दक्षिणी एशिया का सबसे पुराना रेडियो स्टेशन है, एक उद्घोषक के रूप में हुई जहाँ वे बहुत लोकप्रिय हुए। इसके बाद उन्होंने हिन्दी फ़िल्मों में अभिनय करने की ठानी और बम्बई आ गये। 1955 मे बनी "रेलवे स्टेशन" उनकी पहली फ़िल्म थी पर 1957 की 'मदर इंडिया' ने उन्हें बालीवुड का फिल्म स्टार बना दिया। डकैतों के जीवन पर बनी उनकी सबसे बेहतरीन फिल्म मुझे जीने दो ने वर्ष 1964 का फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ अभिनेता पुरस्कार जीता। उसके दो ही वर्ष बाद 1966 में खानदान फिल्म के लिये उन्हें फिर से फ़िल्मफ़ेयर का सर्वश्रेष्ठ अभिनेता पुरस्कार प्राप्त हुआ।

1957 में बनी महबूब खान की फिल्म मदर इण्डिया में शूटिंग के वक़्त लगी आग से नरगिस को बचाते हुए सुनील दत्त बुरी तरह जल गये थे। इस घटना से प्रभावित होकर नरगिस की माँ ने अपनी बेटी का विवाह 11 मार्च 1958 को सुनील दत्त से कर दिया।

1950 के आखिरी वर्षों से लेकर 1960 के दशक में उन्होंने हिन्दी फिल्म जगत को कई बेहतरीन फिल्में दीं जिनमें साधना (1958), सुजाता (1959), मुझे जीने दो (1963), गुमराह (1963), वक़्त (1965), खानदान (1965), पड़ोसन (1967) और हमराज़ (1967) प्रमुख रूप से उल्लेखनीय हैं।

फिल्म "मुझे जीने दो" में उनके बेहतरीन अभिनय ने उन्हें बहुत लोकप्रिय स्टार बना दिया।
1987 में, जब पंजाब उग्रवाद का सामना कर रहा था, तब सद्भाव और भाईचारा स्थापित करने के लिए सुनील दत्त ने बॉम्बे से अमृतसर (स्वर्ण मंदिर) तक महाशांति पदयात्रा की। बंबई से 78 दिनों तक 2000 किमी पैदल चलकर वे अमृतसर पहुंचे और उस महाशांति पदयात्रा में उनके साथ उनकी पुत्री प्रिया दत्त और 80 अन्य व्यक्ति भी थीं। पदयात्रा के दौरान 500 से अधिक सड़क किनारे सभाओं को संबोधित करने के लिए दत्त ने भयानक गर्मी, पीलिया और पैरों के छाले पर काबू पाया।1990 के दशक की शुरुआत में कुछ वर्षों के लिए उनका राजनीतिक करियर रुक गया था, जब उन्होंने अपने बेटे को एके -56 रखने के लिए गिरफ्तार किए जाने के बाद जेल से मुक्त करने के लिए काम किया था, जिसका दावा था कि वह बॉम्बे में बम विस्फोटों के बाद अपने परिवार की सुरक्षा के लिए था।
सुनील दत्त और नरगिस - दोनों पति पत्नी ने मिलकर "अजन्ता आर्ट्स कल्चरल ट्रुप" नाम से एक सांस्कृतिक संस्था का निर्माण बहुत पहले ही कर लिया था। इस संस्था के माध्यम से वे फिल्म निर्माण से लेकर राष्ट्र व लोक कल्याण के कार्य निरन्तर करते रहे। 1981 में यकृत कैंसर से हुई उनकी पत्नी नरगिस दत्त की मृत्यु के बाद सुनील दत्त ने "नरगिस दत्त मैमोरियल कैंसर फाउण्डेशन" की स्थापना की। इतना ही नहीं, प्रति वर्ष उनकी स्मृति में "नरगिस अवार्ड" भी देना प्रारम्भ किया। अब ये दोनों कार्य उनकी बेटियाँ व बेटा मिलकर देखते हैं।

25 मई 2005 को मुम्बई में पाली हिल बान्द्रा स्थित बँगले पर हृदय गति बन्द हो जाने से उनकी मृत्यु हो गयी।

Comments

Popular posts from this blog

P.L.देशपांडे (मृत्यु)

राज कपूर (मृत्यु)

अली अकबर खान