भारत भूषण
#14jun
#27jan
भारत भूषण
🎂14 जून 1920,
मेरठ
⚰️27 जनवरी 1992,
नाल्लाकुनता, हैदराबाद
बच्चे: अपरिजिता भूषण, अनुराधा भूषण
पत्नी: रत्ना भूषण (विवा. 1967–1992)
माता-पिता: रायबहादुर मोतीलाल
इनाम: फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार - सर्वश्रेष्ठ अभिनेता
भारत भूषण हिन्दी फ़िल्मों के एक प्रसिद्ध अभिनेता थे। अपने अभिनय के रंगों से कालिदास, तानसेन, कबीर और मिर्ज़ा ग़ालिब जैसे ऐतिहासिक चरित्रों को नया रूप देने वाले अभिनेता रहे।
उत्तर प्रदेश के मेरठ में 14 जून 1920 में जन्मे भारत भूषण गायक बनने का ख्वाब लिए मुंबई की फ़िल्म नगरी में पहुंचे थे, लेकिन जब इस क्षेत्र में उन्हें मौका नहीं मिला तो उन्होंने निर्माता-निर्देशक केदार शर्मा की 1941 में निर्मित फ़िल्म 'चित्रलेखा' में एक छोटी भूमिका से अपने अभिनय की शुरुआत कर दी। 1951 तक अभिनेता के रूप में उनकी ख़ास पहचान नहीं बन पाई। इस दौरान उन्होंने
भक्त कबीर (1942)
, भाईचारा (1943),
सुहागरात (1948),
उधार (1949),
रंगीला राजस्थान (1949),
एक थी लड़की (1949),
राम दर्शन (1950),
किसी की याद (1950),
भाई-बहन (1950),
आंखें (1950),
सागर (1951),
हमारी शान (1951),
आनंदमठ और माँ (1952)
फ़िल्मों में काम किया
भारत भूषण के अभिनय का सितारा निर्माता-निर्देशक विजय भट्ट की क्लासिक फ़िल्म बैजू बावरा से चमका। बेहतरीन गीत-संगीत और अभिनय से सजी इस फ़िल्म की गोल्डन जुबली कामयाबी ने न सिर्फ विजय भट्ट के प्रकाश स्टूडियो को ही डूबने से बचाया, बल्कि भारत भूषण और फ़िल्म की नायिका मीना कुमारी को स्टार के रूप में स्थापित कर दिया। आज भी इस फ़िल्म के सदाबहार गीत दर्शकों और श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर देते हैं। ओ दुनिया के रखवाले.., मन तड़पत हरि दर्शन को आज.., तू गंगा की मौज में जमुना का धारा.., बचपन की मुहब्बत को.., इंसान बनो कर लो भलाई का कोई काम.., झूले में पवन के आई बहार.., और दूर कोई गाए.. धुन ये सुनाए जैसे फ़िल्म के इन मधुर गीतों की तासीर आज भी बरकरार है। इस फ़िल्म से जुडे़ कई रोचक पहलू हैं। निर्माता विजय भट्ट फ़िल्म के लिए दिलीप कुमार और नर्गिस के नाम पर विचार कर रहे थे, लेकिन संगीतकार नौशाद ने उन्हें अपेक्षाकृत नए अभिनेता-अभिनेत्री को फ़िल्म में लेने पर जोर दिया। इसी फ़िल्म के लिए नौशाद ने तानसेन और बैजू के बीच प्रतियोगिता का गाना शास्त्रीय गायन के धुरंधर उस्ताद आमिर खान और पंडि़त डी.वी. पलुस्कर से गवाया। फ़िल्म की एक और दिलचस्प बात यह थी कि इसके संगीतकार, गीतकार, शकील बदायूंनी और गायक मोहम्मद रफी तीनों ही मुसलमान थे और उन्होंने मिलकर भक्ति गीत 'मन तपड़त हरिदर्शन को आज..' जैसी उत्कृष्ट रचना का सृजन किया था। बैजू बावरा की सफलता से उत्साहित यही टीम एक बार फिर श्री चैतन्य महाप्रभु फ़िल्म के लिए जुड़ी और इसमें सशक्त अभिनय के लिए भारत भूषण को सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का फ़िल्म फेयर पुरस्कार मिला। कलाकारों, साहित्यकारों, संगीतकारों, भक्तों और ऐतिहासिक व्यक्तित्वों को अपने सहज स्वाभाविक अभिनय के रंगों से परदे पर जीवंत करने का भारत भूषण का यह सिलसिला आगे भी जारी रहा
भारत भूषण के फ़िल्मी करियर में निर्माता-निर्देशक सोहराब मोदी की फ़िल्म मिर्ज़ा ग़ालिब का अहम स्थान है। इस फ़िल्म में भारत भूषण ने शायर मिर्ज़ा ग़ालिब के किरदार को इतने सहज और असरदार ढंग से निभाया कि यह गुमां होने लगता है कि ग़ालिब ही परदे पर उतर आए हों। बेहतरीन गीत-संगीत, संवाद और अभिनय से सजी यह फ़िल्म बेहद कामयाब रही और इसे सर्वश्रेष्ठ फ़िल्म और सर्वश्रेष्ठ संगीत के राष्ट्रीय पुरस्कार मिले। इस फ़िल्म के लिए गजलों के बादशाह तलत महमूद की मखमली और गायिका, अभिनेत्री सुरैया की मिठास भरी आवाजों में गाई गई गजलें और गीत 'बेहद मकबूल हुए .., आह को चाहिए इक उम्र असर होने तक.., फिर मुझे दीदए तर याद आया.., दिले नादां तुझे हुआ क्या है.., मेरे बांके बलम कोतवाल.., कहते हैं कि गालिब का है अंदाज-ए-बयां कुछ और भारत भूषण ने लगभग 143 फ़िल्मों में अपने अभिनय की विविधरंगी छटा बिखेरी और अशोक कुमार, दिलीप कुमार, राजकपूर तथा देवानंद जैसे कलाकारों की मौजूदगी में अपना एक अलग मुकाम बनाया
भारत भूषण ने फ़िल्म निर्माण के क्षेत्र में भी कदम रखा, लेकिन उनकी कोई भी फ़िल्म बॉक्स आफिस पर सफल नहीं रही। उन्होंने 1964 में अपनी महत्वाकांक्षी फ़िल्म 'दूज का चांद' का निर्माण किया, लेकिन इस फ़िल्म के भी बॉक्स आफिस पर बुरी तरह पिट जाने के बाद उन्होंने फ़िल्म निर्माण से तौबा कर ली।
वर्ष 1967 में प्रदर्शित फ़िल्म 'तकदीर नायक' के रूप में भारत भूषण की अंतिम फ़िल्म थी। इसके बाद वह माहौल और फ़िल्मों के विषय की दिशा बदल जाने पर चरित्र अभिनेता के रूप में काम करने लगे, लेकिन नौबत यहां तक आ गई कि जो निर्माता-निर्देशक पहले उनको लेकर फ़िल्म बनाने के लिए लालायित रहते थे। उन्होंने भी उनसे मुंह मोड़ लिया। इस स्थिति में उन्होंने अपना
गुजारा चलाने के लिए फ़िल्मों में छोटी-छोटी मामूली भूमिकाएँ करनी शुरू कर दीं। बाद में हालात ऐसे हो गए कि भारत भूषण को फ़िल्मों में काम मिलना लगभग बंद हो गया। तब मजबूरी में उन्होंने छोटे परदे की तरफ रुख़ किया और दिशा तथा बेचारे गुप्ताजी जैसे धारावाहिकों में अभिनय किया। हालात की मार और वक्त के सितम से बुरी तरह टूट चुके हिंदी फ़िल्मों के स्वर्णिम युग के इस अभिनेता ने आखिरकार 27 जनवरी 1992 को 72 वर्ष की उम्र में इस दुनिया को अलविदा कह दिया
🎥 प्रमुख फिल्में
1984 कैदी
1960 मुड़ मुड़ के ना देख
1979 मीरा तानसेन
1969 प्यार का मौसम
1958 फागुन
1956 बसंत बहार
1954 श्री चैतन्य महाप्रभु
1952 बैजू बावरा
Comments
Post a Comment