गौहर जान

#26jun 
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गौहर जान
🎂26 जून 1873
आजमगढ़ , उत्तर-पश्चिमी
⚰️17 जनवरी 1930 
मैसूर , मैसूर साम्राज्य , ब्रिटिश भारतशैलियांग़ज़ल , ठुमरी , दादराव्यवसायसंगीतकार, नर्तक

गौहर जान को पहली महिला रिकार्डिंग आर्टिस्ट के तौर पर जाना जाता हैं. वास्तव में वो गायन और नृत्य जैसी विधाओं में निपूर्ण थी. उन्होंने अपने कला के दम पर एक अलग  पहचान भी बनाई. हालांकि आज उनके बारे में कम लोग जानते हैं लेकिन एक समय ऐसा भी था, जब वो ग्रामोफोन पर लोगों की पहली पसंद हुआ करती थी

गौहर जान का जन्म 26 जून 1873 में उत्तर प्रदेश राज्य के आज़मगढ़ जिले में हुआ था  गौहर जान के माता-पिता ने उनका नाम एंजेलिना येओवार्ड रखा था. उनके परिवार में अलग-अलग धर्म के लोग थे, उनके नाना जहां ब्रिटिश मूल के थे वही नानी भारतीय हिन्दू महिला,पिता एक अमेरिकन क्रिश्चियन थे. इनके पिता का नाम आर्मेनियन ज्यू था जो कि आजमगढ़ की एक ड्राई आइस फेक्ट्री में काम करते थे. इनकी माँ का नाम विक्टोरिया हेम्मिंग था,जिनका जन्म भारत में ही हुआ था और वो भारतीय संगीत और नृत्य की अच्छी समझ रखती थी. परंतु किन्ही कारणों के चलते इनके माता-पिता की शादी कामयाब नहीं रही. विक्टोरिया के जीवन मे खुर्शीद नाम के व्यक्ति आ गये. और इस तरह इनके माता पिता ने 1879 में तलाक ले लिया. तलाक के बाद उन्होंने इस्लाम धर्म अपना लिया. जिससे विक्टोरिया को मालक जान और उनकी बेटी को गौहर जान नाम मिला, गौहर का उपनाम गौर भी था.गौहर की माँ को बड़ी मालक जान के रूप में भी जाना जाता था क्यूंकि उस समय 3 और मालक जान थी. इस कारण विक्टोरिया के उन तीनों में सबसे बड़ी होने के कारण उन्हें बड़ी मालक जान कहा गया.

1883 में गौहर की माँ गौहर को लेकर कलकत्ता पहुँच गयी, जहाँ पर उनको अपनी प्रतिभा दिखाने का बेहतर मौका मिल सकता था. वहां पर दोनों माँ-बेटी ने अपनी ट्रेनिंग शुरू की. उन दोनों ने पटियाला के कालू उस्ताद (जिनका पूरा नाम काले खान था)से गायन में शिक्षा-दीक्षा ली,जबकि अली बख्श से उन्हाने कत्थक सीखा इस तरह अपनी माँ के साथ गौहर ने कई गुरुओं से शिक्षा ली. उन्होंने रामपुर के  उस्ताद वजीर खान,कलकता के प्यारे साहिब और लखनऊ के महाराज बिंदादीन से भी कत्थक की ट्रेनिंग ली.

सृजनबाई से उन्होंने ध्रुपद और धम्मर जबकि चरण दास से उन्होंने बंगाली कीर्तन सीखा. इसी समय महाराजा दरभंगा की सभा में उनका “रंग प्रवेशम” भी हुआ. ये 1887 की बात हैं तब वो मात्र 14 वर्ष की थी. महाराज उनके नृत्य से बहुत प्रसन्न हुए और उन्हें अपने दरबार में राज गायिका और राज नर्तकी बना दिया.

गौहर जान खयाल,ध्रुपद और ठुमरी में बहुत निपुर्ण हो गयी थी. उनकी खयाल संगीत में विशेष महारथ थी इसलिये भातखंडे ने इन्हे भारत का बेस्ट फीमेल ख्याल सिंगर घोषित किया.

गौहर के जीवन में 3 पुरुष थे, जिनमें से एक जमीदार निमाई सेन थे. उनका गौहर के साथ रिश्ता बहुत गहरा था, इस बात का अंदाज उनके द्वारा दिए जाने अमूल्य उपहारों से लगाया जा सकता था. इसके अलावा सैयद गुलाम अब्बास (जो उनके साथ तबला बजाते थे) से भी उनके घनिष्ठ संबंध थे. लेकिन जब गौहर को उनके शादी शुदा होने का पता चला तो उनका रिश्ता खटाई में पड़ गया. उसके बाद वो गुजराती स्टेज एक्टर अमृत वागल नायक के साथ रहने लगी.

गौहर खान का पेशा कुछ ऐसा था कि जिसमें उनका आकर्षक दिखना आवश्यक था. इस कारण ये कहने में कोई अतिश्योक्ति नहीं हैं कि वो प्रतिभाशाली होने के साथ ही सुंदर और आकर्षक व्यक्तित्व की धनी थी. हालाँकि वो विदेशी दम्पति की सन्तान थी लेकिन उनमें दादी के हिन्दुस्तानी गुण भी थे. इसी कारण शायद उनका रंग रूप काफी हद तक हिन्दुस्तानियों जैसा था

1902 में इंडियन म्यूजिक में एक बड़ा परिवर्तन तब आया, जब गौहर जान को ग्रामोफ़ोन कम्पनी ने गानों की एक सीरिज रिकॉर्ड करने को कहा. जो कि बाद में  उनका पेशा ही बन गया और इन रिकॉर्डिंग्स ने इतिहास में बहुत महत्व हासिल किया.

गौहर भारत की पहली महिला थी जिसने रिकॉर्डिंग शुरू की थी – नवम्बर 1902 में कलकत्ता के ईस्टर्न होटल में गौहर अपने नौकर-चाकर के साथ  फ्रेडरिक गैस्बेर्ग के ग्रामोफोन कम्पनी के साथ अनुबंध करने पहुँची. जहाँ उन्होंने 3000 रूपये में वाध्य-यंत्र के साथ गाने का अनुबंध किया. वैसे गौहर के गायन की विधा में आत्म-विश्वास सम्बन्धित कोई कमी नहीं थी लेकिन पीतल के बड़े से रिकॉर्डर के सामने गाना उनके लिए एक नया अनुभव था,जिससे वो पहले असहज थी.लेकिन फिर भी उन्होंने निर्धारित 3 मिनट के समय में अपना  गाना पूरा किया,जिसके अंत में उन्होंने कहा “मेरा नाम गौहर जान” हैं. यही कुछ समय बाद उनका ट्रेड मार्क बन गया.

1902 से लेकर 1920 तक के समय में उन्होंने कई भाषाओं में गाने रिकॉर्ड किये. कहा जाता हैं कि इस दौरान उन्होंने दस अलग-अलग भाषाओं में लगभग 600 गाने रिकॉर्ड किये. इस तरह गौहर ने रिकार्डिंग इंडस्ट्री के महत्व को जल्द ही समझ लिया. उन्हें शास्त्रीय संगीत में 3 मिनट के क्लासिकल परफॉर्मेंस के लिए 3 मिनट का फॉरमेट बनाने के लिए क्रेडिट भी दिया गया था. उनका बनाया ये स्टेंडर्ड कई दशकों तक [एलपी रिकॉर्डिंग के आने तक] कायम रहा.बाद के वर्षों में उन्होंने धर्बंगा के दरबार में दरबारी गायिका का काम किया.

आखिर में ये मैसूर के शाही दरबार में कृष्णा राजा वदियर चतुर्थ के बुलावे पर वहाँ चली गयी. वहां वो 1 अगस्त 1928 को दरबारी म्यूजिशियन के तौर पर नियुक्त की गयी.

गौहर गजलें लिखती थी,उनका पेटनेम “हमदम” था. उन्होंने जो अपने शिष्यों को गाने सिखाये और गाये उनमें से कुछ गाने हैं-

तन मन की सुध,
अन बन जिया में लागे,
हमसे ना बोलो रजा,
जिया में लगे अन बन,
तन मन दिन जा सांवरिया,
मैका पिया बिन कछु ना सुहावे,र
स के भरे तोरे नैन,
पिया चल हट टोरी बनावट बात ना मने री आदि शामिल है.

गौहर की लाइफस्टाइल को ग्रामोफोन कम्पनी के मालिक गैस्बेर्ग ने नोटिस किया. उन्होंने देखा कि जब भी वो रिकार्डिंग के लिए आती तो बहुत अच्छे कपड़े और गहने पहनकर आती और वो कभी रिपीट नहीं होते. कारों के प्रति भी उनका बहुत झुकाव था. उन्हें रेसिंग सीजन में मुंबई जाने का शौक था. उनका घर कोई महल से कम नहीं था. वास्तव में उन्हें तब अपनी समृद्धि के कारण ज्यादा पहचान मिलने लगी थी. उनकी समृद्धि का वो चरम समय ही था जब ये माना जाता था कि कलकत्ता में उनके  नजराने की कीमत 1000 से 3000 रूपये तक थी जो कि उस समय बहुत बड़ी रकम थी. 20वीं शताब्दी के शुरू में उन्हें करोड़पति माना जाने लगा. हालांकि उनकी सम्पति के बारे सही जानकारी नहीं मिली.

वो अपनी सम्पति के दिखावे से काफी प्रसिद्ध हो गयी थी. उनके बारे में सबसे ज्याद चली चर्चा ये थी कि उन्होंने अपनी बिल्ली की शादी में 1200 रूपये खर्च किये थे. एक अन्य कहानी के अनुसार उन्होंने अपनी पालतू बिल्ली के बच्चे होने पर 20,000 रूपये खर्च किये थे.

वो जब दातिया में परफॉर्म करने गयी थी तो उन्होंने अपनी खुदकी एक ट्रेन की डिमांड की थी जिसमें उनके रसोइये और अन्य सहायक,प्राइवेट फिजिशियन, धोबी, नाई और दर्जनों नौकर साथ थे.

गौहर उस जमाने की गायिका थी जब संगीत के क्षेत्र में कोई सम्मान का मानक तय नहीं था. लेकिन उनके कारण ही भारतीयों को ग्रामोफोन में रूचि आने लगी थी और बाद में रेडियो में भी उनके ख़याल की प्रस्तुती को लोगों ने बहुत पसंद किया था. और ये दोनों ही बातें उस जमाने में सम्मान या किसी अवार्ड्स से कम नहीं थी.

विक्रम सम्पत ने उन पर एक किताब भी लिखी हैं जिसका नाम हैं “माई नेम इस गौहर जान:दी लाइफ एंड टाइम्स ऑफ़ मुजिशीयन है.

मैसूर के शाही दरबार में वो केवल 18 महीने तक नौकरी कर सकी,क्योंकि 17 जनवरी 1930 को तो उनका देहांत हो गया. गौहर के अंतिम दिन कुछ अच्छे नहीं बीते वो तब काफी अकेली हो गयी थी. उनके पति ने उनको क़ानूनी दांव पेंच में उलझा दिया था. और उनके पति और रिश्तेदारों के आर्थिक शोषण के कारण वो अपना वैभव युक्त जीवन और पैसे गंवा चुकी थी. वो तब 58 वर्ष की थी और फिर बीमार रहने लगी, और 60 की उम्र में उनकी मृत्यु हो गयी.

गौहर से जुड़े रोचक किस्से

गौहर जान से सम्बन्धित कई किस्से मशहूर हैं. ऐसा ही एक रोचक किस्सा नर्तकी बेनजीर से जुड़ा हैं. बेनज़ीर बाई महफ़िल में थी उनकी परफॉर्मेंस गौहर से पहले होना था. बेनजीर ने भी कुछ बेशकीमती गहने पहन रखे थे जब उनकी परफोर्मेंस खत्म हुयी तो गौहर ने उन्हें ताना दिया कि तुम्हारे चमकते गहने तुम्हारे नृत्य कौशल को बयां नहीं कर सकते, यहाँ केवल प्रतिभा ही चमक सकती हैं. और फिर गौहर ने शानदार प्रदर्शन किया. बेनज़ीर जब मुंबई लौटी तो उन्होंने अपने सभी गहने अपने गुरु को लौटा दिए और उनसे क्लासिकल की तालीम हासिल की. 10 साल की मेहनत के  बाद  बेनजीर को फिर से गौहर के सामने परफॉर्म करने का मौका मिला और इस बार गौहर बेनजीर के पास आई और कहा कि अब तुम्हारे गहने सच में चमक रहे हैं अर्थात तुम्हारी नृत्य प्रतिभा दिख रही हैं.

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