जीवन (मृत्यु)

जीवन 🎂जन्म24अक्टूबर,1951⚰️मृत्यु 10 जून, 1987

🎂जन्म 24 अक्टूबर, 1915
चरित्र अभिनेता जीवन
🎂जन्म 24 अक्टूबर, 1915

जन्म भूमि श्रीनगर, जम्मू और कश्मीर
⚰️मृत्यु 10 जून, 1987
पति/पत्नी किरण
संतान किरण कुमार, भूषण जीवन
कर्म भूमि भारत
कर्म-क्षेत्र हिन्दी सिनेमा
मुख्य फ़िल्में ‘दिल ने फिर याद किया’, ‘हमराज़’, ‘बंधन’, ‘धरम वीर’, ‘चाचा भतीजा’, ‘सुहाग’, ‘नसीब’, ‘मेरे हमसफ़र’, ‘हीर रांझा’, ‘रोटी’, ‘गेम्बलर’, ‘याराना’, ‘सनम तेरी कसम’, ‘देशप्रेमी’ और ‘लावारिस’ इत्यादि।
प्रसिद्धि अभिनेता
नागरिकता भारतीय
अन्य जानकारी अभिनेता जीवन को दर्शकों ने नारद मुनि की भूमिका में काफ़ी पसंद किया। "नारायण.... नारायण..." बोलते जीवन ने देवर्षि नारद के उस पौराणिक पात्र को 60 से अधिक फ़िल्मों में पर्दे पर जीवंत किया था, जो शायद अपने आप में एक विक्रम और एक कलाकार के लिए बड़ी उपलब्धि थी।
 हिन्दी फ़िल्मों के प्रसिद्ध अभिनेता थे। उनका पूरा नाम 'ओंकार नाथ धर' था। उन्होंने फ़िल्मी पर्दे पर अपनी भूमिकाओं को बड़ी ही संजीदगी से निभाया। वैसे तो अभिनेता जीवन ने अधिकांश फ़िल्मों में खलनायक की भूमिका निभाई थी, लेकिन फिर भी एक भूमिका ऐसी थी जिसमें दर्शकों ने उन्हें देखना हमेशा पसंद किया। देवर्षि नारद के रूप में उनके द्वारा निभाई गई भूमिका को दर्शक कभी नहीं भूल पायेंगे। नारद मुनि के पौराणिक पात्र को अभिनेता जीवन ने 60 से भी अधिक फ़िल्मों में पर्दे पर जीवंत किया।

परिचय

अभिनेता जीवन का जन्म 24 अक्टूबर, 1915 को श्रीनगर, जम्मू और कश्मीर में हुआ था। उनका वास्तविक नाम ओंकार नाथ धर था। जीवन को बचपन से ही अभिनेता बनने का मन था। उनके पुत्र और खुद भी एक जाने माने अभिनेता किरण कुमार ने एक पुराने साक्षात्कार में बताया था कि जीवन के पिता जी पाकिस्तान में स्थित गिलगिट के गवर्नर थे। जीवन की माताजी का देहांत सन 1915 में जीवन साहब के जन्म के समय ही हो गया था। उनकी उम्र तीन साल की होते-होते जीवन के पिताजी भी चल बसे थे। किन्तु गवर्नर साहब के खानदान के पुत्र को सिनेमा में अभिनय जैसे उस समय के निम्न व्यवसाय से नाता जोड़ने की इजाजत परिवार वाले कैसे देते? लिहाजा 18 साल की उम्र में जेब में मात्र 26 रुपये लेकर ओंकार नाथ धर बम्बई (वर्तमान मुम्बई) जाने के लिए घर से भाग गए।

जीवन का घर का नाम ‘जीवन किरण’ था और लोग समजते थे कि उन्होंने अपने साथ बेटे का भी नाम जोड़ा था, परंतु हकीकत ये थी कि उनकी पत्नी का नाम ‘किरण’ था। वे लाहौर की थीं। पर्दे पर अधिकतर खलनायक की भूमिका करने वाले जीवन साहब निजी ज़िन्दगी में इतने भले थे कि पैसों के मामले में कोई अगर उन्हें दगा दे जाये तो वे कहते थे- "उस व्यक्ति को ज्यादा जरुरत होगी"।


फ़िल्मी शुरुआत

मुंबई में फ़िल्मी दुनिया में प्रवेश के लिए स्टुडियो में जो भी काम मिला, वह स्वीकार कर लिया। जीवन साहब और बाद में ‘शोले’ जैसी अनेक फ़िल्मों के अदभूत कैमेरा मेन द्वारका दिवेचा दोनों दोस्त मिलकर, शूटिंग के दौरान स्टार्स के चेहरे चमकाने के लिए उन पर प्रकाश फेंकने वाले यानि रिफ्लैकटर्स को संभालने वाले मज़दूर बन गए। एक दिन स्टुडियो में निर्माता मोहन सिन्हा यानि ‘रजनी गंधा’ की हिरोइन अभिनेत्री विद्या सिन्हा के दादाजी अपनी नई फ़िल्म के लिए नये कलाकारों के स्क्रीन टेस्ट कर रहे थे। सिन्हा जी ने कम्पाउन्ड में उन दोनों दोस्तों को देखा और अच्छी कद-काठी के नौजवान ओंकार नाथ धर को पूछा- "क्या तुम अभिनय करना चाहते हो?" ना कहने का सवाल ही कहाँ था? उनका स्क्रीन टेस्ट हुआ और स्वाभाविक था कि परिणाम अच्छा था। सिन्हा जी ने पूछा- "क्या करते हो?" और युवा ने बताया कि वह उनके स्टुडियो में रिफ्लैक्टर संभालता है।

दूसरा सवाल आया- "क्या कुछ गा सकते हो?" जवाब में ओंकार जी ने पंजाब की अमर प्रेम कथा ‘हीर रांझा’ की कुछ पंक्तियां सुनाई और एक मज़दूरी करने वाले व्यक्ति की अभिनय की यात्रा का आरंभ ‘फैशनेबल इन्डिया’ फ़िल्म से हुआ। जब ओंकार नाथ धर यानि ने विजय भट्ट की फ़िल्म में काम करना शुरू किया, तब उन्होंने नया नाम ‘जीवन’ दिया, जो जीवन भर उनका नाम रहा। उनके अभिनय की एक खासियत ये थी कि खलनायकी में वे कॉमेडी भी डाल देते थे। उन्हें दिलीप कुमार के ख़िलाफ़ खलनायक के रूप में फ़िल्म ‘कोहिनूर’ में देखें या ‘नया दौर’ में, अभिनेता जीवन की टक्कर एक अलग ही माहौल खड़ा करती थी। उनका काम ‘अमर अकबर एथॉनी’ में भी काफ़ी सराहा गया था। सन 1964 की फ़िल्म ‘महाभारत’ में उनकी भूमिका ‘शकुनि मामा’ की थी।


नारद मुनि की भूमिका

अभिनेता जीवन को दर्शकों ने नारद मुनि की भूमिका में काफ़ी पसंद किया। "नारायण.... नारायण..." बोलते जीवन ने देवर्षि नारद के उस पौराणिक पात्र को 60 से अधिक फ़िल्मों में पर्दे पर जीवंत किया था, जो शायद अपने आप में एक विक्रम और एक कलाकार के लिए बड़ी उपलब्धि थी। उनको मुख्य भूमिका में लेकर ‘नारद लीला’ फ़िल्म भी आई थी। फ़िल्म 'जॉनी मेरा नाम' के एक दृश्य में 80 लाख के हीरे छुपाने वाले स्मगलर ‘हीरा’

(जीवन) से जब पुलिस पुछताछ करती है तो वे सिगरेट का धुंआ निकालते हुए कहते हैं- "कमिश्नर साहब, आपको जो चार्ज लगाना हो लगाकर छुट्टी कीजिए.... फालतु अफवाहों पे बहस करने से क्या फायदा?" ऐसे तो जाने कितने ही दृश्य याद आ जाते हैं, जब भी जीवन साहब की स्मृति ताजा होती है। लेकिन दर्शकों ने जीवन को सबसे ज़्यादा नारद मुनि के रूप में ही अपनी यादों में बनाये रखा।

प्रमुख फ़िल्में

जीवन की फ़िल्मों में प्रमुख हैं-

‘दिल ने फिर याद किया’, ‘आबरु’, ‘हमराज़’, ‘बंधन’, ‘भाई हो तो ऐसा’, ‘तलाश’, ‘धरम वीर’, ‘चाचा भतीजा’, ‘सुहाग’, ‘नसीब’, ‘टक्कर’, ‘मेरे हमसफ़र’, ‘डार्लिंग डार्लिंग’, ‘फूल और पत्थर’, ‘इन्तकाम’, ‘हीर रांझा’, ‘रोटी’, ‘शरीफ़ बदमाश’, ‘सबसे बड़ा रुपैया’, ‘गेम्बलर’, ‘याराना’, ‘प्रोफेसर प्यारेलाल’, ‘बुलंदी’, ‘सनम तेरी कसम’, ‘देशप्रेमी’, ‘सुरक्षा’ और ‘लावारिस’ इत्यादि।


काम के प्रति समर्पित

जीवन एक ऐसे खलनायक थे, जो हीरो से मार खाने में कभी भी कंजूसी नहीं करते थे। उनका मानना था कि एक फ़िल्म तभी हिट होती है, जब हीरो खलनायक को पीटता है। वह अपने पुत्र किरण कुमार को भी सलाह देते थे कि कोई पात्र तभी हीरो कहलाता है, जब वह खलनायक को बराबर मारता है। इसलिए अपने से कद में छोटे हीरो से भी मार खाने में कसर मत छोड़ो। जीवन से कभी भी निर्माताओं को कोई शिकायत नहीं होती थी, क्योंकि उनके परिवार के किसी सदस्य को सेट पर आना तो दूर की बात थी, फोन भी लंच के समय के अलावा नहीं कर सकते थे। वे अपने अभिनय के प्रति पूरी तरह से समर्पित रहते थे। इसलिए बी. आर. चोपड़ा और मनमोहन देसाई जैसे बड़े निर्माताओं की फ़िल्मों में जीवन साहब नियमित रूप से लिये जाते थे। अभिनेता जीवन के पुत्र किरण कुमार ने एक साक्षात्कार में बताया था कि जीवन साहब धार्मिक स्थानों पर ग़रीबों को खाना खिलाने में और योग्य विद्यार्थीओं को पढ़ाने में आर्थिक सहायता करते रहते थे। वक्त के पाबंद जीवन साहब कभी भी सेट पर देर से नहीं पहुंचे। जब भी वे शूटींग के लिए हाजिर होते थे, सबसे पहले स्टेज को छू कर नमन करने के बाद ही अपना दिन प्रारंभ करते थे।

मृत्यु

अपने काम को पूजा-इबादत जैसा मानने वाले अभिनेता जीवन का 72 साल की उम्र में 10 जून, 1987 को निधन हुआ। नारद मुनि की अपनी अनेक भूमिकाओं और कितनी सारी फ़िल्मों के एक से एक यादगार पात्रों से जीवन साहब हिन्दी सिनेमा के दर्शकों के जीवन में अपना अलग स्थान रखते हुए आज भी ज़िन्दा ही हैं।

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1935 रोमांटिक भारत
1940 जग्गा डाकू फिल्म में दिया गया पंजाबी फिल्म का नाम (दार कश्मीरी)
1940 अनुराधा
1942 स्टेशन मास्टर
1946 अफासना
1948 मेला मेहकू
1948 घर की इज्जत मोती
1949 करवट
1950 हर हर महादेव
1950 छै लाला कैरोरी मॉल पंजाबी फिल्म
1951 अफ़साना चटपट
1951 तराना दीवान साहब
1954 चांदनी चोक इब्राहीम बेग
1954 नागिन प्रवीर
1956 ताज त्रिशंकु सिंह
1957 नौ दो ग्यारह सुरजीत
1957 नया दौर कुंदन
1958 फागुन मधल
1958 दो फूल मास्टरजी
1960 कानून कालिदास
1960 कोहिनोर
1962 रुंगोली साधुराम
1962 शिव पार्वती नारद मुनि
1963 बिदेसिया छोटे ठाकुर भोजपुरी फिल्म
1964 मैं जट्टी पंजाब दी दुनी चंद पंजाबी फिल्म
1964 जिंदगी बनके
1965 महाभारत शकुनी
1965 वक्त अनाथालय वार्डन
1966 फूल और पत्थर जीवनराम
1966 दिल ने फिर याद किया भगत
1967 हमराज़ ठाकुर
1967 बद्रीनाथ यात्रा शिवानंद
1967 आग
1968 आबरू दरवाज़ालाल
1968 आंखें
1968 औलाद मुनीम रामलाल
1969 बंधन जीवन लाल
1969 तलाश जॉन
1969 इंटाक्वाम बांकेलाल
1969 बड़ी दीदी लाला
1970 महाराजा (1970 फ़िल्म) लाला
1970 जॉनी मेरा नाम हीरा
1970 हीर रांझा काजी
1970 परदेसी
1970 मेरे हमसफ़र मित्तल
1972 गरम मसाला कैप्टन किशोर चंद्र
1972 भई हो तो ऐसा राम और भरत के मामाजी
1972 नारद लीला नारद
1973 शरीफ़ बुडमाश दीवान साहब
1973 अनोखी अदा ख़िशीराम
1973 बनारसी बाबू वीके सक्सेना
1973 दो फूल एडवोकेट वर्धराज
1974 रोटी लाला
1975 तेरी मेरी इक जिन्दरी जग्गा डाकू पंजाबी फिल्म
1975 एक गांव की कहानी लाला दीनदयाल
1975 अनोखा मनचंदा
1975 धर्मात्मा अनोखेलाल
1976 सबसे बड़ा रुपैया धनराज
1976 सच्चा मेरा रूप है कुदाम पंजाबी फिल्म
1976 आज का महात्मा प्रधान लिपिक
1977 प्रिय प्रिय
1977 अमर अकबर एंथनी रॉबर्ट / अल्बर्ट
1977 धरम वीर सतपाल सिंह
1977 दिलदार सरपंच चरणदास 'मुखिया'
1977 चाचा भतीजा लक्ष्मीदास
1978 फांसी लाला
1979 बापू बिहारी
1979 जो कि सुरक्षा हीरालाल
1979 गोपाल कृष्ण नारद मुनि
1979 सुहाग पास्कल
1980 टक्कर किशन, विजय और मीना के मामाजी
1980 खंजर
1981 नसीब प्रोफेसर प्रेम
1981 लावारिस लाला
1981 प्रोफेसर प्यारेलाल श्यामलाल / सैमी
1981 याराना किशन और बिशन के मामाजी
1981 बुलुंडी बाबूलाल भाखरी
1981 कमांडर
1981 पूनम सिन्हा
1982 तीसरी आंख पॉल
1982 अशांति मलिक
1982 सनम तेरी कसम विल्सन
1982 देश प्रेमी मुनीम
1982 हाथकडी सूरज
1983 निशान दीवानजी
1984 जख्मी शेर वकील
1985 गिरफ्तार लूसी के पिता
1986 इंसाफ की मंज़िल
1986 काला धंदा गोरे लोग उठाईगीरा
1986 एक और सिकंदर माइकल
1986 आखिरी संघर्ष यह फिल्म 1986 में रिलीज होनी थी लेकिन 1997 में रिलीज हुई
1991 इरादा श्री गुप्ता

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