मदन मोहन

#25jun 
#14july 
मदन मोहन
🎂जन्म 25जुन 1924
⚰️मृत्यू 14जुलाई 1975

25 जून 1924, एरबिल, इराक
मृत्यु की जगह और तारीख: 14 जुलाई 1975, मुम्बई
पत्नी: शीला कोहली (विवा. 1953–1975)
बच्चे: संजीव कोहली
माता-पिता: राय बहादुर चुन्नीलाल, भगवंती देवी
मदन मोहन हिन्दी फिल्मों के एक प्रसिद्ध संगीतकार हैं। गजलों और नज़्मों की रूहानी तर्जों के सृजन के लिए अपना लोहा मनवाने वाले इस संगीतकार का पूरा नाम मदन मोहन कोहली था। अपनी युवावस्था में ये एक सैनिक थे। बाद में संगीत के प्रति अपने झुकाव के कारण ऑल इंडिया रेडियो से जुड़ गए। तलत महमूद तथा लता मंगेशकर से इन्होंने कई यादगार गज़लें गंवाई जिनमें - आपकी नजरों ने समझा (अनपढ़, 1962), अगर मुझसे मोहब्बत है जैसी रचनाएँ शामिल हैं। इनके मनपसन्द गायक मौहम्मद रफ़ी थे। जब ऋषि कपूर और रंजीता की फिल्म लैला मजनूँ बन रही थी तो गायक के रूप में किशोर कुमार का नाम आया परन्तु मदन मोहन ने साफ कह दिया कि पर्दे पर मजनूँ की आवाज़ तो रफ़ी साहब की ही होगी और अपने पसन्दीदा गायक मोहम्मद रफी से ही गवाया और लैला मजनूँ एक बहुत बड़ी म्यूजिकल हिट साबित हुई। साथ ही रफी साहब अभिनेता ऋषि कपूर की आवाज़ बन गए।वर्ष 2004 में फिल्म वीर ज़ारा के लिए उनकी अप्रयुक्त धुनों का इस्तेमाल किया गया था। उनकी प्रयुक्त धुनों के लिए गीत जावेद अख्तर ने लिखे। लग जा गले कि फिर ये हंसी रात हो ना हो और तुम जो मिल गए हो जैसे कालजयी गीत देने वाले इस बेहद गुणी संगीतकार मदन मोहन का निधन 51 वर्ष की अल्पायु में हुआ!
25 जून 1924 को, बगदाद में मदन मोहन का जन्म हुआ,उनके पिता राय बहादुर चुन्नीलाल इराकी पुलिस बलों के साथ महालेखाकार के रूप में काम कर रहे थे, मदन मोहन ने अपने जीवन के प्रारंभिक वर्ष मध्य पूर्व में बिताए थे। 1932 के बाद, उनका परिवार अपने गृह शहर चकवाल, फिर पंजाब प्रांत पाकिस्तान के झेलम जिले में लौट आया। उन्हे एक दादा-दादी की देखभाल में छोड़ दिया गया, जबकि उसके पिता व्यवसाय के अवसरों की तलाश में बॉम्बे गए। उन्होंने अगले कुछ वर्षों तक लाहौर के स्थानीय स्कूल में पढ़ाई की। लाहौर में रहने के दौरान, उन्होंने बहुत कम समय के लिए एक करतार सिंह से शास्त्रीय संगीत की मूल बातें सीखीं, हालांकि संगीत में उन्हें कभी कोई औपचारिक प्रशिक्षण नहीं मिला। कुछ समय बाद, उनका परिवार मुंबई आ गया जहाँ उन्होंने बायकुला में सेंट मैरी स्कूल से अपना सीनियर कैम्ब्रिज पूरा किया। मुंबई में, 11 साल की उम्र में, उन्होंने ऑल इंडिया रेडियो द्वारा प्रसारित बच्चों के कार्यक्रमों में प्रदर्शन करना शुरू कर दिया। 17 साल की उम्र में, उन्होंने देहरादून के कर्नल ब्राउन कैम्ब्रिज स्कूल में भाग लिया जहाँ उन्होंने एक साल का प्रशिक्षण पूरा किया।
प्रमुख फिल्में 
1964 हकीकत 
1966 मेरा साया 
1970 हीर रांझा

इस संगीत के जादूगर को तभी तो लता दीदी भी इन्हे गजलों के बादशहा कहती थी!यहां तक के जब इनके संगीत निर्देशन मे दिदी ने आपकी नजरों ने समझा प्यार के काबील मुझे गाया तो संगीतकार नौशाद जी इतने प्रभावित हुए के कहने लगे अगर ये धून मुझे मिल जाए तो अपनी सारा संगीत खजाना इनपर लुटा देने की ख्वाहिश की थी।यहां तक आशा दिदी भी कहती रहती की आप सिर्फ दिदी से ही गंवाते है गाने,फिर इन्होंने आशा दिदी को मेरा साया फिल्म का झुमका गीरा रे...गाना देकर खुश किया इतनी लगन और मेहनत से आशा दिदी ने वो गाना गाया के आज तक लोग भूले नही।
एक सैनिक के रुप मे मदनमोहन जी की जिन्दगी की शुरूआत हुई फिर उन्होंने वह नौकरी छोड ऑल इंडिया रेडिओ पर अपने  संगीत के प्रती लगाव होने से जूड गये,उनके पिता रायबहादूर चुन्नीलाल इराकी पुलीस मे महालेखाकार थे सो उनकी दिली तमन्ना थी के बेटा भी फौजी या पुलिस  की वर्दी पहने बाद उनकी यह इच्छा मदन जी ने पुरी की पर उनका दिल नहीं लगा उस नौकरी मे ।
आकाशवाणी मे जुडते उनका परिचय,उस्ताद फैय्याज खान ,उस्ताद अली अकबर खान, बेगम अख्तर, तलतजी  जैसे बहोत जानेमाने कलाकारों से हुआ वो उनसे प्रभावित हुए फिर खुद संगीत की ओर रुझान करते हुए अपने सपनों को नया रुप देने हेतू वो लखनऊ से बंबई चले आए,वहां उनकी मुलाकात सचीन दा बर्मन, सी रामचंद्र ,श्यामसुंदर,जैसे प्रसिद्ध संगितकारोंसे हुई और वो उनके सहायक  तौर पे काम करने लगे1950की फिल्म आंखे का संगीत निर्देशन का काम उनको मिल गया जो स्वतंत्र रुप मे था,इस फिल्म बाद उनका नाम चर्चीत और बंबई आने का मकसद सफल हुआ,साथ मे लता दिदी उनकी  चहेती  गायिका बन गयी  उनके सभी फिल्म संगीत मे लता दिदी ही थी,एक बार ओ पी नैय्यर जी यह कहने लगे की" मुझे समझ नही आता के लता मदनमोहन के लिए है या मदनमोहन लता के लिये पर एक बात है के ना अब तक मदनमोहन जैसा संगितकार हुआ ना लता जैसी गायिका "सच बात है।
उन्होंने जितने भी फिल्मों को संगीत दिया वो अमर ही हुआ 1957की देख कबीरा रोया,1965की हकीकत उनके नाम का परचम आसमां मे लहराने  लगा और वो सफल संगितकार बन गये फिल्म इन्डस्ट्री मे।
उनके दिए हुए तमाम फिल्मे गीतों की वजह से हिट हुई आम लोगों के दिल को भा गये सभी गीत जिसे आज भी लोग भूल नही पाये।
उनकी कुछ फिल्मे,रिश्ते नाते,छोटे बाबू दुनिया ना माने,जेलर,मेमसाहिब,जब याद किसीकी आती है,रेल्वे प्लॅटफॉर्म, संजोग,अदालत,पाकैटमार,चाचा जिन्दाबाद, सुहागन ,बापबेटे,आशियाना,एक मुठ्ठी आसमान, आंखे,नौनिहाल, अकेली मत जईयो,एक कली मुस्काई,बावर्ची,परवाना,मदहोश, निन्द हमारी ख्वाब तुम्हारे, निला आकाश मनमौजी पुजा के फुल,शराबी,बहाना,गजल,आदी फिल्मे  जो उनके संगीत का जादु हमे देखने मिला और हम सरोबार हुए 🎶🎶🎶🎶🎶
आज आस सम्राट, इस जादूगर का जनमदिन है तो हम उनके ही गीत सुनते उन्हे याद करते है और हमारी तरफ से ऊन्हे नमन करते है🎶
🎥
1950 आंखें 
1951 आदा 
1951 मदहोश 
1952 आशियाना 
1952 अंजाम 
1952 खूबसूरत 
1952 निर्मोही 
1953 बागी 
1953 चाचा चौधरी 
1953 धून 
1954 इलज़ाम 
1954 मस्ताना 
1955 एहसान 
1955 रेलवे प्लेटफ़ार्म 
1956 भाई-भाई 
1956 समान 
1956 मेम साहब 
1956 पॉकेट मार 
1957 बेटी 
1957 छोटे बाबू 
1957 देख कभिरा रोया 
1957 गेटवे ऑफ इंडिया 
1957 समुंदर 
1957 शेरू 
1958 आखिरी दाव 
1958 अदालत 
1958 चंदन 
1958 एक शोला 
1958 जलिक 
1958 खजांची ' 
1958 खोटा पैसा 
1958 नाइट क्लब 
1959 बाप बेटे 
1959 बैंक मैनेजर 
1959 चाचा जिंदाबाद 
1959 दुनिया ना माने 
1959 जागीर 
1959 मंत्री 
1959 मोहर 
1960 बहाना 
1961 संजोग 
1961 सेनापति
1962 अनपढ़ 
1962 ममौजी 
1963 अकेली मत जैयो 
1964 आप की परछाइयां 
1964 गज़ाल 
1964 Haqeeqat 
1964 जहान आरा 
1964 पूजा के फूल 
1964 शराबी 
1964 सुहागन
1964 वो कौन थी?  
1965 बॉम्बे रेस कोर्स 
1965 नया कानून 
1965 नीला आकाश 
1965 रिश्ते नाते 
1966 डाक घर 
1966 दुल्हन एक रात की 
1966 लड़का लड़की 
1966 मेरा साया 
1966 नींद हमारी ख्वाब तुम्हारे 
1967 घर का चिराग 
1967 जब याद किसी की आती है 
1967 नौनिहाल 
1967 नवाब सिराजुद्दौला 
1968 एक कली मुस्कुराई 
1969 चिराग
1970 दस्तक 
1970 हीर रांझा 
1970 माँ का आँचल 
1970 महाराजा 
1971 परवाना 
1972 बावर्ची 
1972 कोशिश 
1972 सुल्ताना डाकू 
1973 एक मुट्ठी आसमान 
1973 हनस्ते ज़ख्म 
1973 हिंदुस्तान की कसम 
1973 प्रभात 
1973 दिल की राहें 
1974 असलियत 
1974 चौकीदार
1975 मौसम  
1976 लैला मजनू 
1976 शराफत छोड़ दी मैने 
1977 साहब बहादुर 
1978 जालान 
(⚰️मरणोपरांत)
1979 इंस्पेक्टर ईगल
1980 चालबाज़ 
2004 वीर जारा
2023 रॉकी और रानी की प्रेम कहानी

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