गरिश कर्नाड
indo-canadian mudar:
गिरीश कर्नाड
गिरीश रघुनाथ कर्नाड 19 मई 1938 माथेरान , बॉम्बे प्रेसीडेंसी , ब्रिटिश भारत (अब महाराष्ट्र , भारत में )
मृत
10 जून 2019 (आयु 81 वर्ष)
बेंगलुरु , कर्नाटक , भारत
पेशा
नाटककारनिदेशकअभिनेता
अल्मा मेटर
कर्नाटक विश्वविद्यालय
मैग्डलेन कॉलेज, ऑक्सफोर्ड
अवधि
1961–2019
शैली
कल्पना
साहित्यिक आंदोलन
नव्या
उल्लेखनीय कार्य
वाईआरएफ स्पाई यूनिवर्स में तुगलक
तलेदंडा
अजीत शेनॉय
जीवनसाथी
सरस्वती गणपति
बच्चे
रघु कर्नाड , शाल्मली राधा
एक जाने माने कवि, रंगमंच कर्मी, कहानी लेखक, नाटककार, फ़िल्म निर्देशक और फ़िल्म अभिनेता हैं। गिरीश कर्नाड को 1994 में साहित्य अकादमी पुरस्कार, 1998 में ज्ञानपीठ पुरस्कार के अलावा पद्म श्री और पद्म भूषण से सम्मानित किया जा चुका है। उन्होंने हिन्दी में उत्सव, मंथन, इक़बाल, डोर जैसी फ़िल्मों में काम किया।
जीवन_परिचय
गिरीश कर्नाड का जन्म 19 मई, 1938 को माथेरान, महाराष्ट्र में हुआ था। बचपन से उनकी रुचि नाटकों की तरफ थी। महाराष्ट्र में जन्में गिरीश ने स्कूल के समय से ही थियेटर से जुड़कर काम करना शुरू कर दिया था। कर्नाटक आर्ट कॉलेज से स्नातक करने के बाद वह इंग्लैण्ड चले गए। जहाँ उन्होंने आगे की पढ़ाई पूरी की। इसके बाद गिरीश कर्नाड भारत लौट आए और चेन्नई में ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी में सात साल तक काम करने के बाद इस्तीफा दे दिया। इस दौरान वह चेन्नई के कई आर्ट और थियेटर क्लबों से जुड़े रहे। इसके बाद वह शिकागो चले गए जहाँ उन्होंने यूनिवर्सिटी और शिकागो में बतौर प्रोफ़ेसर काम किया। तत्पश्चात् गिरीश भारत दुबारा वापस लौट आए और अपने साहित्य के अपार ज्ञान से क्षेत्रीय भाषाओं में कई फ़िल्में भी बनाईं और साथ ही कई फ़िल्मों की पटकथा भी लिखी।
कार्यक्षेत्र
गिरीश कर्नाड केवल नाटककार ही नहीं, अभिनेता, फ़िल्म निर्माता, कहानी लेखक और समाज की आधुनिक समस्याओं को उजागर करने वाले महान् साहित्यकार हैं।
साहित्य
उनका विचार था कि वे कवि बनेंगे, परन्तु जब छात्रवृत्ति लेकर आक्सफ़ोर्ड गए, तो उन्होंने नाटकों की ओर रुझान दर्शाया। उन्होंने पहला नाटक कन्नड़ में लिखा और उसके बाद उसका अंग्रेज़ी अनुवाद किया। उनके नाटकों में 'ययाति', 'तुग़लक', 'हयवदन', 'अंजु मल्लिगे', 'अग्निमतु माले', 'नागमंडल', 'अग्नि और बरखा' आदि बहुत प्रसिद्ध हैं। गिरीश ने कन्नड़ भाषा में अपनी रचनाएं लिखीं। जिस समय उन्होंने कन्नड़ में लिखना शुरू किया, उस समय कन्नड़ लेखकों पर पश्चिमी साहित्यिक पुनर्जागरण का गहरा प्रभाव था। लेखकों के बीच किसी ऐसी चीज़ के बारे में लिखने की होड़ थी जो स्थानीय लोगों के लिए बिल्कुल नयी थी। इसी समय कर्नाड ने ऐतिहासिक तथा पौराणिक पात्रों से तत्कालीन व्यवस्था को दर्शाने का तरीका अपनाया तथा काफ़ी लोकप्रिय हुए। गिरीश कर्नाड के नाटक ययाति (1961, प्रथम नाटक) तथा तुग़लक़ (1964) ऐसे ही नाटकों का प्रतिनिधित्व करते हैं। तुगलक से कर्नाड को बहुत प्रसिद्धि मिली और इसका कई भारतीय भाषाओं में अनुवाद हुआ। इनकी कृतियों में जहाँ भारत का पुरातन झाँकता है, वहाँ आधुनिकता का भी सम्मिश्रण है। इस प्रकार साहित्य से सम्बन्धित अनेक क्षेत्रों में काम करने के कारण गिरीश कर्नाड ने कन्नड़ साहित्य को ही समृद्ध नहीं किया, हिन्दी साहित्य भी उनकी देन से अछूता नहीं है।
सिनेमा
गिरीश कर्नाड एक सफल पटकथा लेखक होने के साथ एक बेहतरीन फ़िल्म निर्देशक भी हैं। गिरीश कर्नाड ने वर्ष 1970 में कन्नड़ फ़िल्म 'संस्कार' से अपने फ़िल्मी कैरियर की शुरुआत की जिसकी पटकथा उन्होंने ही लिखी थी। इस फ़िल्म को कई पुरस्कार मिले जिसके बाद गिरीश ने कई फ़िल्में की। उन्होंने कई हिन्दी फ़िल्मों में भी काम किया, जिसमें निशांत, मंथन, पुकार आदि प्रमुख हैं। गिरीश कर्नाड ने छोटे परदे पर भी अनेक महत्त्वपूर्ण कार्यक्रम और 'सुराजनामा' आदि सीरियल पेश किए हैं। उनके कुछ नाटक जिनमें 'तुग़लक' आदि आते हैं, सामान्य नाटकों से कुछ भिन्न हैं। गिरीश कर्नाड संगीत नाटक अकादमी के अध्यक्ष भी रह चुके हैं।
सम्मान_और_पुरस्कार
1972 में संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार
1974 में पद्मश्री
1992 में पद्मभूषण
1992 में कन्नड़ साहित्य अकादमी पुरस्कार
1994 में साहित्य अकादमी पुरस्कार
1998 में ज्ञानपीठ पुरस्कार
1998 में कालिदास सम्मान
इसके अतिरिक्त गिरीश कर्नाड को कन्नड़ फ़िल्म ‘संस्कार’ के लिए सर्वश्रेष्ठ निर्देशक का राष्ट्रीय पुरस्कार भी मिल चुका है।
निधन
मशहूर एक्टर गिरीश कर्नाड का 10 जून 2019, सोमवार को 81 साल की उम्र में निधन हो गया। वह पिछले कई दिनों से बीमार थे।
टीवी श्रृंखला
मालगुडी डेज़ (1987)
स्वामी एंड फ्रेंड्स में स्वामी के पिता के रूप में (एपिसोड 1 से 8)
द वॉचमैन में वॉचमैन के रूप में (एपिसोड 17)
इंद्रधनुष (1989) अप्पू और बाला के पिता के रूप में
खानदान (टीवी श्रृंखला)
अपना अपना आसमान
मुख्य मेजबान और निर्देशक के रूप में स्वराजनामा, डीडी1 और दूरदर्शन पर प्रसारित हुआ
फ़िल्मों का निर्देशन किया
वंश वृक्ष (1971, कन्नड़)
डीआर बेंद्रे (1972, वृत्तचित्र)
तब्बलियु नीनाडे मगाने (1977, कन्नड़ )
गोधुलि (1977, हिन्दी)
ओन्डानोंडु कलादल्ली (1978, कन्नड़)
कनूरू हेग्गाडिथी (1999, कन्नड़)
काडु (1973, कन्नड़)
महेंदर में दुर्गा
उत्सव (1984, हिंदी)
वो घर (1984, हिंदी), कीर्तिनाथ कुर्ताकोटी के कन्नड़ नाटक आ मणि पर आधारित
द लैंप इन द निचे (1990) (वृत्तचित्र)
चेलुवी (1992, कन्नड़ और हिंदी (डब))
चिदंबर रहस्य (2005, कन्नड़) (डीडी1 के लिए टीवी फिल्म)
गिरीश कर्नाड
गिरीश रघुनाथ कर्नाड 19 मई 1938 माथेरान , बॉम्बे प्रेसीडेंसी , ब्रिटिश भारत (अब महाराष्ट्र , भारत में )
मृत
10 जून 2019 (आयु 81 वर्ष)
बेंगलुरु , कर्नाटक , भारत
पेशा
नाटककारनिदेशकअभिनेता
अल्मा मेटर
कर्नाटक विश्वविद्यालय
मैग्डलेन कॉलेज, ऑक्सफोर्ड
अवधि
1961–2019
शैली
कल्पना
साहित्यिक आंदोलन
नव्या
उल्लेखनीय कार्य
वाईआरएफ स्पाई यूनिवर्स में तुगलक
तलेदंडा
अजीत शेनॉय
जीवनसाथी
सरस्वती गणपति
बच्चे
रघु कर्नाड , शाल्मली राधा
एक जाने माने कवि, रंगमंच कर्मी, कहानी लेखक, नाटककार, फ़िल्म निर्देशक और फ़िल्म अभिनेता हैं। गिरीश कर्नाड को 1994 में साहित्य अकादमी पुरस्कार, 1998 में ज्ञानपीठ पुरस्कार के अलावा पद्म श्री और पद्म भूषण से सम्मानित किया जा चुका है। उन्होंने हिन्दी में उत्सव, मंथन, इक़बाल, डोर जैसी फ़िल्मों में काम किया।
जीवन_परिचय
गिरीश कर्नाड का जन्म 19 मई, 1938 को माथेरान, महाराष्ट्र में हुआ था। बचपन से उनकी रुचि नाटकों की तरफ थी। महाराष्ट्र में जन्में गिरीश ने स्कूल के समय से ही थियेटर से जुड़कर काम करना शुरू कर दिया था। कर्नाटक आर्ट कॉलेज से स्नातक करने के बाद वह इंग्लैण्ड चले गए। जहाँ उन्होंने आगे की पढ़ाई पूरी की। इसके बाद गिरीश कर्नाड भारत लौट आए और चेन्नई में ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी में सात साल तक काम करने के बाद इस्तीफा दे दिया। इस दौरान वह चेन्नई के कई आर्ट और थियेटर क्लबों से जुड़े रहे। इसके बाद वह शिकागो चले गए जहाँ उन्होंने यूनिवर्सिटी और शिकागो में बतौर प्रोफ़ेसर काम किया। तत्पश्चात् गिरीश भारत दुबारा वापस लौट आए और अपने साहित्य के अपार ज्ञान से क्षेत्रीय भाषाओं में कई फ़िल्में भी बनाईं और साथ ही कई फ़िल्मों की पटकथा भी लिखी।
कार्यक्षेत्र
गिरीश कर्नाड केवल नाटककार ही नहीं, अभिनेता, फ़िल्म निर्माता, कहानी लेखक और समाज की आधुनिक समस्याओं को उजागर करने वाले महान् साहित्यकार हैं।
साहित्य
उनका विचार था कि वे कवि बनेंगे, परन्तु जब छात्रवृत्ति लेकर आक्सफ़ोर्ड गए, तो उन्होंने नाटकों की ओर रुझान दर्शाया। उन्होंने पहला नाटक कन्नड़ में लिखा और उसके बाद उसका अंग्रेज़ी अनुवाद किया। उनके नाटकों में 'ययाति', 'तुग़लक', 'हयवदन', 'अंजु मल्लिगे', 'अग्निमतु माले', 'नागमंडल', 'अग्नि और बरखा' आदि बहुत प्रसिद्ध हैं। गिरीश ने कन्नड़ भाषा में अपनी रचनाएं लिखीं। जिस समय उन्होंने कन्नड़ में लिखना शुरू किया, उस समय कन्नड़ लेखकों पर पश्चिमी साहित्यिक पुनर्जागरण का गहरा प्रभाव था। लेखकों के बीच किसी ऐसी चीज़ के बारे में लिखने की होड़ थी जो स्थानीय लोगों के लिए बिल्कुल नयी थी। इसी समय कर्नाड ने ऐतिहासिक तथा पौराणिक पात्रों से तत्कालीन व्यवस्था को दर्शाने का तरीका अपनाया तथा काफ़ी लोकप्रिय हुए। गिरीश कर्नाड के नाटक ययाति (1961, प्रथम नाटक) तथा तुग़लक़ (1964) ऐसे ही नाटकों का प्रतिनिधित्व करते हैं। तुगलक से कर्नाड को बहुत प्रसिद्धि मिली और इसका कई भारतीय भाषाओं में अनुवाद हुआ। इनकी कृतियों में जहाँ भारत का पुरातन झाँकता है, वहाँ आधुनिकता का भी सम्मिश्रण है। इस प्रकार साहित्य से सम्बन्धित अनेक क्षेत्रों में काम करने के कारण गिरीश कर्नाड ने कन्नड़ साहित्य को ही समृद्ध नहीं किया, हिन्दी साहित्य भी उनकी देन से अछूता नहीं है।
सिनेमा
गिरीश कर्नाड एक सफल पटकथा लेखक होने के साथ एक बेहतरीन फ़िल्म निर्देशक भी हैं। गिरीश कर्नाड ने वर्ष 1970 में कन्नड़ फ़िल्म 'संस्कार' से अपने फ़िल्मी कैरियर की शुरुआत की जिसकी पटकथा उन्होंने ही लिखी थी। इस फ़िल्म को कई पुरस्कार मिले जिसके बाद गिरीश ने कई फ़िल्में की। उन्होंने कई हिन्दी फ़िल्मों में भी काम किया, जिसमें निशांत, मंथन, पुकार आदि प्रमुख हैं। गिरीश कर्नाड ने छोटे परदे पर भी अनेक महत्त्वपूर्ण कार्यक्रम और 'सुराजनामा' आदि सीरियल पेश किए हैं। उनके कुछ नाटक जिनमें 'तुग़लक' आदि आते हैं, सामान्य नाटकों से कुछ भिन्न हैं। गिरीश कर्नाड संगीत नाटक अकादमी के अध्यक्ष भी रह चुके हैं।
सम्मान_और_पुरस्कार
1972 में संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार
1974 में पद्मश्री
1992 में पद्मभूषण
1992 में कन्नड़ साहित्य अकादमी पुरस्कार
1994 में साहित्य अकादमी पुरस्कार
1998 में ज्ञानपीठ पुरस्कार
1998 में कालिदास सम्मान
इसके अतिरिक्त गिरीश कर्नाड को कन्नड़ फ़िल्म ‘संस्कार’ के लिए सर्वश्रेष्ठ निर्देशक का राष्ट्रीय पुरस्कार भी मिल चुका है।
निधन
मशहूर एक्टर गिरीश कर्नाड का 10 जून 2019, सोमवार को 81 साल की उम्र में निधन हो गया। वह पिछले कई दिनों से बीमार थे।
टीवी श्रृंखला
मालगुडी डेज़ (1987)
स्वामी एंड फ्रेंड्स में स्वामी के पिता के रूप में (एपिसोड 1 से 8)
द वॉचमैन में वॉचमैन के रूप में (एपिसोड 17)
इंद्रधनुष (1989) अप्पू और बाला के पिता के रूप में
खानदान (टीवी श्रृंखला)
अपना अपना आसमान
मुख्य मेजबान और निर्देशक के रूप में स्वराजनामा, डीडी1 और दूरदर्शन पर प्रसारित हुआ
फ़िल्मों का निर्देशन किया
वंश वृक्ष (1971, कन्नड़)
डीआर बेंद्रे (1972, वृत्तचित्र)
तब्बलियु नीनाडे मगाने (1977, कन्नड़ )
गोधुलि (1977, हिन्दी)
ओन्डानोंडु कलादल्ली (1978, कन्नड़)
कनूरू हेग्गाडिथी (1999, कन्नड़)
काडु (1973, कन्नड़)
महेंदर में दुर्गा
उत्सव (1984, हिंदी)
वो घर (1984, हिंदी), कीर्तिनाथ कुर्ताकोटी के कन्नड़ नाटक आ मणि पर आधारित
द लैंप इन द निचे (1990) (वृत्तचित्र)
चेलुवी (1992, कन्नड़ और हिंदी (डब))
चिदंबर रहस्य (2005, कन्नड़) (डीडी1 के लिए टीवी फिल्म)
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